वो ऐसा कैसे कर सकती हैं...
तीज का त्यौहार आ रहा है और घर में अनगिनत काम हैं । ऊपर से हमारी तबियत , पता नहीं त्यौहार के समय ही क्यों खराब हो जाती है । खैर छोड़िए इन सब बातों को , हम पहले अपना परिचय तो दें दें । हम मालिनी हैं ...मालिनी राठौड़ । बस हमारे सरनेम में ही एक रौब है वरना हमसे तो चूहे भी ना डरे । क्या करे अब ! हम हैं ही ऐसे ,कि कोई भी हमसे नहीं डरता । अब कुछ दिन पहले की ही बात ले लीजिए । हम एक साज सिंगार की बड़ी सी शाप के अंदर थे और अपने लिए एक सुंदर सा कंगन पसंद कर रहे थे । कंगन पसंद किया और कुछ दूसरी चीजें देखने लगी । कुछ चीजें पसंद करके काउंटर पर आकर बिल देखने लगी । बिल चेक किया तो देखा पांच सौ रूपए कम है । " अब आप सब ये मत सोचिए की सब लोग तो बिल बढ़ने से चिंता करने लगते हैं । लेकिन यें तो बिल कम होने पर चिंतित हो गई ।"
तो क्यों ना होंगे चिंतित , हमने जिस कंगन को पसंद किया था । उस कंगन की कीमत ही पांच सौ रूपए थी । जब मैंने अपना सामान देखा तो उसमें मेरे पसंद किए हुए कंगन नहीं थे । मैंने जब इसके बारे में काउंटर पर पूछा तो मुझे एक महिला की तरफ इशारा करके कहा कि , वो जो सामने खड़ी हैं ना उन्होंने आपसे ज्यादा पैसे लेकर वो कंगन खरीद लिया है ।
हमने सुना तो , गुस्सा बहुत आया हमें आखिर " वो ऐसा कैसे कर सकतीं हैं " । जिस चीज को पहले हमने पसंद किया था उसे कोई और कैसे खरीद सकता है । दो - चार बातें शाॅप ओनर को सुनाकर उस महिला की तरफ गये । पास जाकर देखा तो हमारी पड़ोसन मिसेज सिन्हा थी । उन्हें हाय , हैलो कहा और सीधे मुद्दे पर आ गए ।
हम - मिसेज सिन्हा , आपने वो कंगन क्यों ले लिया ?
मिसेज सिन्हा हमारा सवाल सुनकर ही हमें अजीब नज़रों से देखने लगी थी । जैसे हमने कुछ ग़लत कह दिया हो ।
मिसेज सिन्हा - मिसेज राठौर , आपको क्या लगता है , मैंने वो कंगन क्यूं लिया होगा ! यकीनन वो मुझे बहुत पसंद आया इसलिए मैंने उस कंगन को खरीदा है । उसने अपने पैसों का रौब दिखाते हुए कहा !
हम - मिसेज सिन्हा , क्या आपको पता नहीं था कि , उस कंगन को मैंने पसंद किया हैं । मैंने लगभग उसे खरीद ही लिया था । सिर्फ पैसे देने बचे थे और आपने उसे ज्यादा पैसे देकर खरीद लिया । आप ऐसा कैसे कर सकती हैं !
मिसेज सिन्हा - मैंने ये कर दिया है , मिसेज राठौर ! उसने कहा और वहां से चली गई । उस दिन से अब तक हमारा दिमाग भट्ठी की तरह तप रहा है । इसलिए आज सोचा की तीज भी आ रही है । क्यों ना हम अपने लिए कुछ साड़ी ही खरीद लेें । यही सोचकर आज शाम को मै हम खरीदारी करने चल पड़े । घर से निकले और सीधे सुमीत बाजार में जाकर ठहरें । हम पहले बच्चों के कपड़े खरीदने के लिए ऊपर जा ही रहे थे कि , सामने मिसेज सिन्हा को साड़ी पसंद करते देखा । वो एक लाल रंग एक सुंदर सी साड़ी को बार-बार छूती फिर रख देती ,वो सारी उसने अलग रखकर वो एक आइने के सामने दूसरी साड़ियों को अपने ऊपर लगा कर देख रही थी । हमने उसे ऐसा करते हुए ध्यान से देखा और मौके के फायदा उठाया और सीधे उस साड़ी काउंटर पर जाकर उसी लाल साड़ी को पसंद करके खरीद लिया और सीधे बिल बनवाने के लिए दे दी । और ऊपर जाने लगे , तभी मिसेज सिन्हा की आवाज़ आई वो थोड़ी ऊंची आवाज़ में चिल्ला रही थी । " आपने किसे दे दी वो साड़ी ! " जब उस शख्स ने मेरी तरफ़ ऊंगली करके दिखाया तो उसके मुंह से बस यही निकला ...." वो ऐसा कैसे कर सकती हैं " मेरे साथ !
पर उन्हें शायद ये पता नहीं है ... कि जैसे के साथ तैसा करना चाहिए । हमेशा सीधे बने रहने से उसके नष्ट होने की संभावना बढ़ जाती है । इसलिए जो जैसा आपके साथ हो , वैसा आप उनके साथ रहें । ये हम नहीं कहते , नीति कहता है ।
समाप्त
Mohammed urooj khan
28-Aug-2022 09:26 AM
बहुत खूब 👌👌👌👌
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shweta soni
28-Aug-2022 09:26 AM
धन्यवाद सर 🙏
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Punam verma
28-Aug-2022 09:25 AM
Very nice mam
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shweta soni
28-Aug-2022 09:26 AM
धन्यवाद आपका 😊
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Gunjan Kamal
28-Aug-2022 09:23 AM
वाह! पढ़कर अच्छा लगा साथ ही नीति की भी सीख मिली। बहुत खूब मैम 👏👌🙏🏻
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shweta soni
28-Aug-2022 09:26 AM
धन्यवाद मैम 🙏
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